और "साहील" वो समझा की, मुझे अपनेदम हराया था। और "साहील" वो समझा की, मुझे अपनेदम हराया था।
बस बेवज़ह इच्छाओं को ज़रूरत हो जितनी बस उतनी बढ़ाओ। बस बेवज़ह इच्छाओं को ज़रूरत हो जितनी बस उतनी बढ़ाओ।
ये वक्त सिखाता गया और हम सीखते गये समझौता करना हालात से, समझते गये। ये वक्त सिखाता गया और हम सीखते गये समझौता करना हालात से, समझते गये।
त्याग भी हूँ मैं स्वार्थ भी हूँ ममता हूँ बलिदान भी हूँ मैं मै स्त्री हूँ। त्याग भी हूँ मैं स्वार्थ भी हूँ ममता हूँ बलिदान भी हूँ मैं मै स्त्री हूँ।
नज़्म की रंगरलिया हैं, अज़्म की गुस्ताखियाँ हैं। नज़्म की रंगरलिया हैं, अज़्म की गुस्ताखियाँ हैं।
खिड़की खोलकर घर मे घुस जाते हैं,जब हम सभी सो जाते हैं। खिड़की खोलकर घर मे घुस जाते हैं,जब हम सभी सो जाते हैं।